तिलोत्तमा अप्सरा साधना एवं कवच
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इस नायिका कवच को यक्षिणी पुजा से पहले 1,5 या 7 बार जप किया जाना चाहिए। इस कवच के जप से किसी भी प्रकार की सुन्दरी साधना में विपरीत परिणाम प्राप्त नहीं होते और साधना में जल्द ही सिद्धि प्राप्त होती हैं। हम आशा करते हैं कि जब भी आप कोई भी यक्षिणी साधना करोगें तो इस कवच का जप अवश्य करोगें। इस कवच के जप से समस्त प्रकार की सिद्धियाँ देने वाली यक्षिणी साधक के नियंत्रण मे आ जाती हैं और साधक के सभी मनोरथो को पूर्ण करती हैं। यक्षिणी साधना से जुडा यह कवच अपने आप मे दुर्लभ हैं। इस कवच के जपने से यक्षिणीयों का वशीकरण होता हैं। तो क्या सोच रहे हैं आप........................
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इस नायिका कवच को यक्षिणी पुजा से पहले 1,5 या 7 बार जप किया जाना चाहिए। इस कवच के जप से किसी भी प्रकार की सुन्दरी साधना में विपरीत परिणाम प्राप्त नहीं होते और साधना में जल्द ही सिद्धि प्राप्त होती हैं। हम आशा करते हैं कि जब भी आप कोई भी यक्षिणी साधना करोगें तो इस कवच का जप अवश्य करोगें। इस कवच के जप से समस्त प्रकार की सिद्धियाँ देने वाली यक्षिणी साधक के नियंत्रण मे आ जाती हैं और साधक के सभी मनोरथो को पूर्ण करती हैं। यक्षिणी साधना से जुडा यह कवच अपने आप मे दुर्लभ हैं। इस कवच के जपने से यक्षिणीयों का वशीकरण होता हैं। तो क्या सोच रहे हैं आप........................
।। श्री उन्मत्त-भैरव
उवाच ।।
श्रृणु कल्याणि
! मद्-वाक्यं, कवचं
देव-दुर्लभं। यक्षिणी-नायिकानां
तु, संक्षेपात् सिद्धि-दायकं
।।
ज्ञान-मात्रेण
देवशि ! सिद्धिमाप्नोति निश्चितं। यक्षिणि स्वयमायाति, कवच-ज्ञान-मात्रतः ।।
सर्वत्र
दुर्लभं देवि ! डामरेषु प्रकाशितं। पठनात् धारणान्मर्त्यो, यक्षिणी-वशमानयेत् ।।
विनियोगः- ॐ
अस्य श्रीयक्षिणी-कवचस्य श्री गर्ग ऋषिः, गायत्री
छन्दः,
श्री
अमुकी यक्षिणी देवता, साक्षात्
सिद्धि-समृद्धयर्थे पाठे विनियोगः।
ऋष्यादिन्यासः-
श्रीगर्ग ऋषये नमः शिरसि, गायत्री छन्दसे
नमः मुखे, श्री रतिप्रिया
यक्षिणी देवतायै नमः हृदि, साक्षात्
सिद्धि-समृद्धयर्थे पाठे विनियोगाय नमः सर्वांगे।
।। मूल पाठ ।।
शिरो मे
यक्षिणी पातु, ललाटं
यक्ष-कन्यका।
मुखं श्री धनदा पातु, कर्णौ मे कुल-नायिका ।।
मुखं श्री धनदा पातु, कर्णौ मे कुल-नायिका ।।
स्कन्धौ
कुलालपा पातु, गलं मे
कमलानना।
किरातिनी सदा पातु, भुज-युग्मं जटेश्वरी ।।
किरातिनी सदा पातु, भुज-युग्मं जटेश्वरी ।।
विकृतास्या सदा
पातु, महा-वज्र-प्रिया मम।
अस्त्र-हस्ता पातु नित्यं, पृष्ठमुदर-देशकम् ।।
अस्त्र-हस्ता पातु नित्यं, पृष्ठमुदर-देशकम् ।।
भेरुण्डा माकरी
देवी, हृदयं पातु सर्वदा।
अलंकारान्विता पातु, नितम्ब-स्थलं दया ।।
अलंकारान्विता पातु, नितम्ब-स्थलं दया ।।
धार्मिका
गुह्यदेशं मे, पाद-युग्मं
सुरांगना।
शून्यागारे सदा पातु, मन्त्र-माता-स्वरुपिणी ।।
शून्यागारे सदा पातु, मन्त्र-माता-स्वरुपिणी ।।
निष्कलंका सदा
पातु, चाम्बुवत्यखिलं
तनुं।
प्रान्तरे धनदा पातु, निज-बीज-प्रकाशिनी ।।
प्रान्तरे धनदा पातु, निज-बीज-प्रकाशिनी ।।
लक्ष्मी-बीजात्मिका
पातु, खड्ग-हस्ता
श्मशानके।
शून्यागारे नदी-तीरे, महा-यक्षेश-कन्यका।।
शून्यागारे नदी-तीरे, महा-यक्षेश-कन्यका।।
पातु मां
वरदाख्या मे, सर्वांगं पातु
मोहिनी।
महा-संकट-मध्ये तु, संग्रामे रिपु-सञ्चये ।।
महा-संकट-मध्ये तु, संग्रामे रिपु-सञ्चये ।।
क्रोध-रुपा सदा
पातु, महा-देव निषेविका।
सर्वत्र सर्वदा पातु, भवानी कुल-दायिका ।।
सर्वत्र सर्वदा पातु, भवानी कुल-दायिका ।।
इत्येतत् कवचं
देवि ! महा-यक्षिणी-प्रीतिवं।
अस्यापि स्मरणादेव, राजत्वं लभतेऽचिरात्।।
अस्यापि स्मरणादेव, राजत्वं लभतेऽचिरात्।।
पञ्च-वर्ष-सहस्राणि, स्थिरो भवति भू-तले।
वेद-ज्ञानी सर्व-शास्त्र-वेत्ता भवति निश्चितम्।
अरण्ये सिद्धिमाप्नोति, महा-कवच-पाठतः।
यक्षिणी कुल-विद्या च, समायाति सु-सिद्धदा।।
वेद-ज्ञानी सर्व-शास्त्र-वेत्ता भवति निश्चितम्।
अरण्ये सिद्धिमाप्नोति, महा-कवच-पाठतः।
यक्षिणी कुल-विद्या च, समायाति सु-सिद्धदा।।
अणिमा-लघिमा-प्राप्तिः
सुख-सिद्धि-फलं लभेत्।
पठित्वा धारयित्वा च, निर्जनेऽरण्यमन्तरे।।
पठित्वा धारयित्वा च, निर्जनेऽरण्यमन्तरे।।
स्थित्वा
जपेल्लक्ष-मन्त्र मिष्ट-सिद्धिं लभेन्निशि।
भार्या भवति सा देवी, महा-कवच-पाठतः।।
भार्या भवति सा देवी, महा-कवच-पाठतः।।
ग्रहणादेव
सिद्धिः स्यान्, नात्र कार्या
विचारणा ।।
।। हरि ॐ तत्सत ।।
तिलोत्तमा
अप्सरा की गिनती भी श्रेष्ठ अप्सराओं मे होती हैं। यह अप्सरा प्रत्यक्ष और
अप्रत्यक्ष दोनो ही रुप मे साधक की सहायता करती रहती हैं। यह साधना अनुभुत हैं। इस
साधना को करने से सभी सुखो की प्राप्ति होती हैं। इस साधना को शुरु करते ही एक –
दो दिन में धीमी धीमी खुशबू का प्रवाह होने लगता हैं। यह खुशबू तिलोत्तमा के सामने
होने की पूर्व सुचना हैं। अप्सरा का प्रत्यक्षीकरण एक श्रमसाध्य कार्य हैं। मेहनत
बहुत ही जरुरी हैं। एक बार अप्सरा के प्रत्यक्षीकरण के बाद कुछ भी दुर्लभ नहीं रह
जाता, इसमे कोई दोराय नहीं हैं। यह प्रक्रिया आपकी सेवा में प्रस्तुत करने की
कोशिश करता हूँ। सामान्यतः अप्सरा साधना भी गोपनीयता की श्रेष्णी में आती हैं।
सभी को इस प्रकार की साधना जीवन मे एक बार सिद्ध करने की पुरी कोशिश करनी चाहिए
क्योंकि कलियुग में जो भी कुछ चाहिए वो सब इस प्रकार की साधना से सहज ही प्राप्त
किया जा सकता हैं। इन साधनाओं की अच्छी बात यह हैं कि इन साधनाओं को साधारण
व्यक्ति भी कर सकता हैं मतलब उसको को पंडित तांत्रिक बनाने की कोई अवश्यकता नहीं
हैं।
साधक स्नान कर ले अगर नही भी कर सको तो हाथ-मुहँ अच्छी तरह धौकर, धुले
वस्त्र पहनकर, रात मे ठीक 10 बजे
के बाद साधना शुरु करें। रोज़ दिन मे एक बार स्नान करना जरुरी है। मंत्र जाप
मे कम्बल का आसन रखे और अप्सरा और स्त्री के प्रति सम्मान आदर होना चाहिए। अप्सरा , गुरु, धार्मिक
ग्रंथो और विधि मे पुर्ण विश्वास होना चाहिए, नहीं तो सफलत होना मुश्किल हैं।
अविश्वास का साधना मे कोई स्थान नही है। साधना का समय
एक ही रखने की कोशिश करनी चाहिए।
एक स्टील की प्लेट मे सारी सामग्री रख ले। साधना करते समय
और मंत्र जप करते समय जमीन को स्पर्श नही करते। माला को लाल या किसी अन्य रंग के
कपडे से ढककर ही मंत्र जप करे या गौमुखी खरीदे ले। मंत्र जप को अगुँठा और माध्यमा
से ही करे । मंत्र जपते समय माला मे जो अलग से एक दान लगा होता हैं उसको लांघना
नहीं है मतलब जम्प नहीं करना हैं। जब दुसरी माला शुरु हो तो माला के आखिए
दाने/मनके को पहला दान मानकर जप करें, इसके लिए आपको माला को अंत मे पलटना होगा।
इस क्रिया का बैठकर पहले से अभ्यास कर लें।
पूजा सामग्री:- सिन्दुर, चावल, गुलाब
पुष्प, चौकी, नैवैध,
पीला आसन, धोती या कुर्ता पेजामा, इत्र, जल
पात्र मे जल, चम्मच, एक
स्टील की थाली, मोली/कलावा, अगरबत्ती,एक
साफ कपडा बीच बीच मे हाथ पोछने के लिए, देशी
घी का दीपक, (चन्दन,
केशर, कुम्कुम,
अष्टगन्ध यह सभी तिलक के लिए))
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विधि : पूजन के लिए स्नान आदि से निवृत्त होकर साफ-सुथरे आसन पर पूर्व या
उत्तर दिशा में मुंह करके बैठ जाएं। पूजन सामग्री अपने पास रख लें।
बायें हाथ मे जल लेकर, उसे दाहिने हाथ से ढ़क लें। मंत्रोच्चारण के साथ जल को सिर, शरीर और पूजन सामग्री पर छिड़क लें या पुष्प से अपने को जल से छिडके।
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ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा। यः स्मरेत्
पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तरः शुचिः॥
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(निम्नलिखित मंत्र बोलते हुए शिखा/चोटी को
गांठ लगाये / स्पर्श करे)
ॐ चिद्रूपिणि महामाये! दिव्यतेजःसमन्विते।
तिष्ठ देवि! शिखामध्ये तेजोवृद्धिं कुरुष्व मे॥
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(अपने माथे पर कुंकुम या चन्दन का तिलक करें)
ॐ चन्दनस्य महत्पुण्यं, पवित्रं
पापनाशनम्। आपदां हरते नित्यं, लक्ष्मीस्तिष्ठति
सर्वदा॥
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(अपने सीधे हाथ से आसन का कोना जल/कुम्कुम थोडा डाल दे) और कहे
ॐ पृथ्वी! त्वया धृता लोका देवि! त्वं विष्णुना धृता। त्वं च धारय मां देवि! पवित्रं कुरु चासनम्॥
ॐ पृथ्वी! त्वया धृता लोका देवि! त्वं विष्णुना धृता। त्वं च धारय मां देवि! पवित्रं कुरु चासनम्॥
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संकल्प:-
दाहिने हाथ मे जल ले।
मैं ........अमुक......... गोत्र मे जन्मा,...................
यहाँ आपके पिता का नाम.......... ......... का पुत्र .............................यहाँ
आपका नाम....................., निवासी.......................आपका पता............................ आज सभी देवी-देव्ताओं को
साक्षी मानते हुए देवी तिलोत्त्मा अप्सरा की पुजा,
गण्पति और गुरु जी की पुजा देवी तिलोत्त्मा अप्सरा के साक्षात दर्शन की
अभिलाषा और प्रेमिका रुप मे प्राप्ति के लिए कर रहा हूँ जिससे देवी
तिलोत्त्मा अप्सरा प्रसन्न होकर दर्शन दे और मेरी आज्ञा का
पालन करती रहें साथ ही साथ मुझे प्रेम, धन धान्य और सुख प्रदान करें।
जल और सामग्री को छोड़ दे।
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गणपति का पूजन करें।
ॐ गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः। गुरुः साक्षात
पर ब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥
ॐ श्री गुरु चरणकमलेभ्यो नमः। ॐ
श्री गुरवे नमः। आवाहयामि, स्थापयामि, ध्यायामि।
गुरु पुजन कर लें कम से कम गुरु मंत्र की चार माला करें या जैसा आपके गुरु का आदेश हो।
सर्व
मंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके। शरण्ये त्रयंबके गौरी नारायणि नमोअस्तुते
ॐ श्री गायत्र्यै नमः। ॐ सिद्धि बुद्धिसहिताय
श्रीमन्महागणाधिपतये नमः।
ॐ लक्ष्मीनारायणाभ्यां नमः। ॐ
उमामहेश्वराभ्यां नमः। ॐ वाणीहिरण्यगर्भाभ्यां नमः।
ॐ शचीपुरन्दराभ्यां नमः। ॐ सर्वेभ्यो
देवेभ्यो नमः। ॐ सर्वेभ्यो ब्राह्मणेभ्यो नमः।
ॐ भ्रं भैरवाय
नमः का 21 बार जप कर ले।
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अब अप्सरा का ध्यान करें और सोचे की वो आपके सामने हैं।
दोनो हाथो को मिलाकर और फैलाकर कुछ नमाज पढने की तरफ बना लो। साथ ही साथ “ॐ ह्रीं श्रीं क्लीं श्रीं तिलोत्त्मा अप्सरा आगच्छ आगच्छ स्वाहा” मंत्र का 21 बार उचारण करते हुए एक एक गुलाब थाली मे चढाते जाये। अब सोचो कि अप्सरा आ चुकी हैं।
हे सुन्दरी तुम तीनो लोकों को मोहने वाली हो तुम्हारी देह गोरे गोरे
रंग के कारण अतयंत चमकती हुई हैं। तुम नें अनेको
अनोखे अनोखे गहने पहने हुये और बहुत ही सुन्दर और अनोखे वस्त्र को पहना हुआ हैं।
आप जैसी सुन्दरी अपने साधक की समस्त मनोकामना को पुरी करने मे जरा सी भी देरी नही
करती। ऐसी विचित्र सुन्दरी तिलोत्तमा अप्सरा को मेरा कोटि कोटि प्रणाम।
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इन गुलाबो के सभी गन्ध से तिलक करे। और स्वयँ को
भी तिलक कर लें।
ॐ अपूर्व सौन्दयायै, अप्सरायै
सिद्धये नमः।
मोली/कलवा चढाये : वस्त्रम्
समर्पयामि ॐ तिलोत्त्मा अप्सरायै नमः
गुलाब का इत्र चढाये : गन्धम समर्पयामि ॐ तिलोत्त्मा अप्सरायै
नमः
फिर चावल (बिना टुटे) : अक्षतान् समर्पयामि ॐ तिलोत्त्मा
अप्सरायै
नमः
पुष्प : पुष्पाणि
समर्पयामि ॐ तिलोत्त्मा अप्सरायै नमः
अगरबत्ती : धूपम्
आघ्रापयामि ॐ तिलोत्त्मा अप्सरायै नमः
दीपक (देशी घी का) : दीपकं दर्शयामि ॐ तिलोत्त्मा
अप्सरायै नमः
मिठाई से पुजा करें।: नैवेद्यं निवेदयामि ॐ तिलोत्त्मा अप्सरायै नमः
फिर पुजा सामप्त होने पर सभी मिठाई को स्वयँ ही ग्रहण कर लें।
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पहले एक मीठा पान (पान, इलायची, लोंग, गुलाकन्द का)
अप्सरा को अर्प्ति करे और स्वयँ खाये। इस मंत्र की स्फाटिक की माला से 21 माला जपे और
ऐसा 11 दिन करनी हैं।
ॐ क्लीं तिलोत्त्मा अप्सरायै मम वश्मनाय क्लीं फट
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यहाँ देवी को मंत्र जप समर्पित कर दें। क्षमा याचना कर सकते हैं। जप
के बाद मे यह माला को पुजा स्थान पर ही रख दें। मंत्र जाप के बाद आसन पर ही पाँच
मिनट आराम करें।
ॐ गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः। गुरुः साक्षात
पर ब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नमः ॥
ॐ श्री गुरु चरणकमलेभ्यो नमः।
यदि कर सके तो पहले की भांति पुजन करें और अंत मे पुजन गुरु को
समर्पित कर दे।
अंतिम दिन जब अप्सरा दर्शन दे तो फिर मिठाई इत्र आदि अर्पित करे और
प्रसन्न होने पर अपने मन के अनुसार वचन लेने की कोशिश कर सकते हैं।
पुजा के अंत मे एक चम्मच जल आसन के नीचे जरुर डाल दें और आसन को
प्रणाम कर ही उठें।
॥ हरि ॐ तत्सत ॥
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नियम जिनका पालन अधिक से अधिक इस साधना मे करना चाहिए वो सब नीचे
लिखे हैं।
ब्रह्मचरी रहना परम जरुरी होता हैं अगर
कुछ विचारना हैं तो केवल अपने ईष्ट का या ॐ नमः शिवाय या अप्सरा का ध्यान करें, आप
सदैव यह सोचे कि वो सुन्दर सी अप्सरा आपके पास ही मौजुद हैं और आपको देख रही हैं।
ऐसी अवस्था मे क्या शोभनीय हैं आप स्वयँ अन्दाजा लगा सकते हैं।
भोजन: मांस, शराब, अन्डा, नशे, तम्बाकू, तामसिक
भोजन आदि सभी से ज्यादा से ज्यादा दुर रहना हैं। इनका प्रयोग मना ही
हैं। केवल सात्विक भोजन ही करें क्योंकि यह काम भावना को भडकाने का काम करते हैं। मंत्र
जप के समय कृपा करके नींद्, आलस्य, उबासी, छींक, थूकना, डरना, लिंग
को हाथ लगाना, सेल फोन को पास रखना, जप
को पहले दिन निधारित संख्या से कम-ज्यादा जपना, गा-गा
कर जपना, धीमे-धीमे जपना, बहुत्
ही ज्यादा तेज-तेज जपना, सिर हिलाते
रहना, स्वयं हिलते रहना, मंत्र
को भुल जाना (पहले से याद नहीं किया तो भुल जाना), हाथ-पैंर
फैलाकर जप करना यह सब कार्य मना हैं। मेरा मतलब हैं कि बहुत ही
गम्भीरता से मंत्र जप करना हैं। यदि आपको पैर बदलने की जरुरत हो तो माला पुरी होने
के बाद ही पैरों को बदल सकते हैं या थोडा सा आराम कर सकते हैं लेकिन मंत्र जप बन्द
ना करें।
यदि आपको सिद्धि चाहिए तो भगवन श्री शिव शंकर भगवान के
कथन को कभी ना भुलना कि "जिस साधक की जिव्हा परान्न (दुसरे का भोजन खाना) से
जल गयी हो, जिसका मन में परस्त्री (अपनी पत्नि के अलावा कोई
भी) हो और जिसे किसी से प्रतिशोध लेना हो उसे भला केसै सिद्धि प्राप्त हो सकती
हैं"।
यदि उसे एक बार भी प्रेमिका की तरह प्रेम/पुजा किया
तो आने मे कभी देरी नही करती है। साधना के समय वो एक देवी मात्र ही हैं और आप साधक
हैं। इनसे सदैव आदर से बात करनी चाहिए। समस्त अप्सराएँ
वाक सिद्ध होती हैं।
किसी भी साधना को सीधे ही करने नही बैठना चाहिए। उससे पहले आपको अपना कुछ अभ्यास करना चाहिए। मंत्रो का उचारण कैसे करना है यह भी जान लेना चाहिए और बार बार बोलकर अभ्यास कर लेना चाहिए।
ऐसा
करने पर अप्सरा जरुर सिंद्ध होती हैं बाकी जो देवी कालिका की इच्छा क्योंकि होता
वही हैं जो देवी जगत जननी चाहती हैं। साधना से किसी को नुकसान पहुँचाने पर साधना
शक्ति स्वयँ ही समाप्त होने लगती हैं। इसलिए अपनी साधना की रक्षा करनी चाहिए। किसी को
अपनी शक्ति का प्रदर्शन करने की जरुरत नहीं हैं। यहाँ कोई किसी के काम नहीं आता
हैं लेकिन फिर भी कभी कभार किसी ना किसी जो बहुत ही जरुरत मन्द हो की सहायता करी
जा सकती हैं। वैसे यह साधना साधक का ही ज्यादा भला करने वाले हैं।
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